सच्चे मित्र | Sachche Mitra | Hindi Story | Hindi Kahaniya Moral Stories

बहुत पुराने जमाने की बात है। एक गाँव में एक मोहन नाम का लड़का रहता था। उसके पांच मित्र थे रवि, शशि, कमल, सूरज और भगवंत। वैसे तो वो पांचों ही उसके बहुत अच्छे मित्र थे लेकिन पिछले कुछ समय से उसके मन में एक शंका चल रही थी। जिसके हल के लिए वो एक संत के पास पहुंचा। आपके चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव। खुश रहो बालक। बताओ कैसे आना हुआ? मैं जानता हूं यह अजीब बात है। मेरे पांच मित्र हैं। उन पांचों में मेरा सच्चा मित्र कौन है, यह मुझे जानना है। नहीं, यह बिल्कुल अजीब नहीं है। इस उम्र में यह विचार आना बिल्कुल स्वाभाविक है। चलो मैं तुम्हें कुछ बिंदु बताता हूँ जिससे तुम पता लगा सकते हो कि तुम्हारा सच्चा मित्र कौन है। वह संत मोहन को पांच बिंदु बताते हैं, जिससे वह अपने सच्चे मित्र का पता लगा सकता है। मोहन वापस आ जाता है और अपना काम शुरू करता है।

उसने एक लड़के को बुलाया और उससे कहा कि वह उसके दोस्तों के बीच एक झूठ फैलाए। लड़के ने जाकर उन सब से कहा कि मोहन अपने पिता के पैसे चुराता है। रवि के सिवा सभी मित्र शशि, कमल, सूरज और भगवंत मोहन के पास आ गए और उससे पूछने लगे। मोहन, क्या यह सच है कि तुम अपने पापा के पैसे चुराते हो? बुरा मत मानना। लेकिन एक लड़के ने हम सब से ऐसा कहा है। हम तुम्हारे बारे में गलत नहीं सोचना चाहते। इसलिए सीधे तुमसे पूछने चले आए। हां मोहन बताओ ये झूठ है ना? हां, ऐसा कुछ नहीं है। ये जिसने भी कहा है, सरासर झूठ है। मोहन ने देखा कि रवि नहीं आया है। उसने सोचा कि रवि ने बिना पूछे ही उसके खिलाफ कही गई बात को मान लिया। उसे लगा कि शायद रवि उसका सच्चा मित्र नहीं है, लेकिन उसे अभी अपने दोस्तों की और परीक्षा लेनी थी। 

एक दिन वो अपने पांचों दोस्तों के साथ नदी के पास खेलने गया। उसे तैरना आता था लेकिन वो उनकी परीक्षा लेने के लिए अचानक नदी में गिरकर डूबने का नाटक करने लगा। चलो आज पता चलता है कि कौन मेरा सच्चा मित्र है। बचाओ बचाओ। अरे मोहन तो डूब रहा है, जल्दी हमें उसे बचाना होगा। हाँ, चलो नदी में कूदो। रवि, कमल, सूरज और भगवंत सभी नदी में कूद पड़े और मोहन को बचाने की कोशिश करने लगे। लेकिन शशि ने नदी में कूदने की कोई कोशिश नहीं की। शशि क्यों नहीं आ रहा? क्या उसे मेरी परवाह नहीं है? मोहन को शशि का यह रवैया बहुत बुरा लगा। उसने सोचा कि शायद शशि उसकी परवाह नहीं करता और उसे सच्चे मित्र की तरह नहीं मानता। कल रवि और आज शशि। हद हो गई। जिन्हें मैंने अपना सबसे अच्छा मित्र समझा, वही मेरे सच्चे मित्र नहीं है। 

फिलहाल असली दोस्तों की पहचान करने के लिए अगला पड़ाव था उनसे 500 सिक्के उधार माँगना। रवि मुझे 500 सिक्के उधार चाहिए। क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो? बिल्कुल मोहन, तुम्हें जितनी भी जरूरत हो ले लो। रवि ने बिना किसी सवाल के 500 सिक्के मोहन को दे दिए। मोहन ने रवि का धन्यवाद किया और आगे बढ़ गया। शशि, मुझे 500 सिक्के उधार चाहिए। मैं तुम्हें अगले महीने लौटा दूंगा। बिल्कुल मित्र, ये लो। शशि ने भी तुरंत 500 सिक्के दे दिए। सूरज मुझे 500 सिक्के चाहिए। क्या तुम उधार दे सकते हो? हां, क्यों नहीं। इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है? सूरज ने भी बिना किसी हिचकिचाहट के 500 सिक्के दे दिए। भगवंत यार, 500 सिक्के होंगे क्या तेरे पास? हाँ हाँ है। यह लो भगवंत ने भी तुरंत 500 सिक्के दे दिए। अब अंत में मोहन कमल के पास पहुँचा। कमल मुझे 500 सिक्के चाहिए। क्या तुम उधार दे सकते हो? मैं 500 तो नहीं 50 है। यह रख लो, पर मुझे बहुत जरूरत है। लेकिन यार मेरे पास बस 50 ही हैं। मोहन को कमल की यह कंजूसी बहुत बुरी लगी। उसने सोचा कि कमल शायद सच्चा मित्र नहीं है, क्योंकि उसने जरूरत के वक्त पूरी मदद नहीं की। 

अब सच्चे मित्र की अगली परीक्षा के लिए उसने एक लड़के से कहा कि वह उसके दोस्तों तक उसकी झूठी दुर्घटना की खबर पहुँचाए। लड़के ने ऐसा ही किया। मोहन क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? हमने सुना कि तुम सीढ़ियों से गिर पड़े। कैसे हो तुम? तुम्हें कुछ ज्यादा चोट तो नहीं आई? भगवान करे, तुम जल्दी ठीक हो जाओ यार। सूरज कहाँ है? क्या उसे मेरी हालत के बारे में नहीं पता चला? पता नहीं मोहन हम भी सूरज को ढूंढ रहे थे लेकिन वो कहीं नहीं मिला। मोहन को यह बहुत बुरा लगा कि सूरज उसकी इतनी गंभीर स्थिति में भी मिलने नहीं आया। वो बहुत परेशान था कि उसका हर एक मित्र एक परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो रहा है। 

आखिरकार कुछ दिन बाद मोहन ने संत द्वारा बताए पांचवें और अंतिम बिंदु पर काम किया। रवि मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ यार। पर यह किसी को बताना मत। मोहन, तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। शशि मैंने एक दुकान से कुछ सामान चुरा लिया। यार मुझे बहुत बुरा लग रहा है, पर यह किसी को बताना मत। अब तुम निश्चिंत रहो। मोहन मैं इसे किसी से नहीं कहूँगा। कमल ये बात किसी को बताना मत। पर पता है मैं ना रात को सोते हुए बिस्तर गीला कर देता हूँ। मुझे यह बीमारी है। मोहन तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। पर इसका इलाज करवाओ। एक राज़ की बात बताऊँ। मेरा असली नाम ना मंगल है। पर यह सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच ही रहनी चाहिए। तुम निश्चिंत रहो मोहन। मैं किसी को नहीं बताऊँगा। मेरा मतलब मंगल। भगवंत, मैं तुम्हें अपना एक राज़ बताता हूँ। किसी से कहना मत। दरअसल मेरी माँ सौतेली है। अरे मोहन, ऐसा कैसे हो सकता है? तुमने आज से पहले तो ऐसा कुछ नहीं बताया। पर चलो, तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। कुछ दिन बाद मोहन जब रास्ते से जा रहा था तो उसे एक लड़का मिला और वो बोला। क्या बात? मोहन सुना है तुम्हारी माँ सौतेली हैं। मोहन को बहुत बुरा लगा और उसे समझ आ गया कि भगवंत ने उसका राज़ खोल दिया। 

संत के बताए पांच बिंदु पूरे हो चुके थे पर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि उसका सच्चा मित्र कौन है। इसलिए वो संत के पास पहुंचा और उन्हें पूरी बात बताई। आपके चरणों में मेरा कोटि कोटि प्रणाम। मैंने आपके बताए पांच बिंदुओं का पालन किया और अपने दोस्तों की परीक्षा ली। लेकिन हर एक परीक्षा में एक मित्र अनुत्तीर्ण हुआ। अब मैं कैसे पता लगाएं कि मेरा सच्चा मित्र कौन है? कुछ समझ में नहीं आ रहा। संत कुछ बोल पाते उससे पहले ही मोहन के सभी मित्र वहाँ आ पहुँचे। हम बताते हैं कि सच्चा मित्र कौन है। अरे तुम सब यहाँ कैसे? हमें लग ही रहा था कि कुछ गड़बड़ है। इसीलिए हमने तुम्हारा पीछा किया। अब हम तुम्हारे मन की सारी शंकाएं दूर कर देंगे। अब वो लोग बताना शुरू करते हैं। मोहन जब उस लड़के ने बताया कि तुम अपने पिताजी के पैसे चुराते हो तो मैंने तुमसे आकर इसलिए नहीं पूछा क्योंकि मुझे यकीन था कि तुम ऐसा कर ही नहीं सकते तो पूछकर तुम पर शक क्यों करूँ? मोहन यह सुनकर शर्मिंदा हो गया। 

अब शशि ने मोहन से कहा। मोहन, मैं तुम्हें बचाने के लिए नदी में नहीं कूद पाया, क्योंकि मुझे तैरना ही नहीं आता। अगर मैं कूदता तो हम दोनों ही डूब जाते यार! अब मुझे माफ कर दो। शशि मुझे यह बात नहीं पता थी। मुझे माफ कर दो शशि। मुझे यह बात नहीं पता थी। मैंने बिना सोचे समझे तुम्हें गलत समझ लिया यार। 

इसके बाद कमल ने मोहन को अपनी स्थिति समझाई। मोहन मैं तुम्हें 500 सिक्के नहीं दे सका, क्योंकि मेरे पास सिर्फ 50 ही थे। यह सब अमीर हैं, पर मैं गरीब हूं यार। इन्होंने अपनी संपत्ति का एक छोटा हिस्सा दिया। लेकिन मैंने तो अपनी पूरी पूंजी दे दी। मुझे माफ कर दो कमल। कमल यह बात तो मुझे पता होनी चाहिए थी। तभी सूरज बोला, मोहन, जब तुमने झूठी दुर्घटना वाली परीक्षा ली थी, उसी समय मैं एक सच्ची दुर्घटना का शिकार हुआ था। एक सांड ने मेरे पेट में सींग मार दिया था। मैं कुछ दिन उठ नहीं पाया और इलाज के लिए मेरे माता पिता मुझे दूसरे गांव ले गए थे। हे भगवान, तुमने मुझे बाद में बताया क्यों नहीं? कोई बात नहीं मोहन मैंने बस सोचा कि क्यों अपना दुख बता बताकर तुम्हारा दुख बढ़ाओ। मोहन ने सूरज से माफी मांगी और तभी भगवंत एक लड़के को सामने लाया। मोहन यह वही लड़का है जिसने तुम्हारा राज सुना था। मोहन मुझे माफ कर दो यार। मैंने भगवंत और तुम्हारी बातें गलती से सुन ली थी। भगवंत ने मुझे कुछ नहीं बताया था। अपने हिस्से की सच्चाई बता कर। मोहन के सभी मित्र अपनी नाराजगी जाहिर करने लगे। मोहन, क्या तुम्हें हम पर भरोसा नहीं था? तुमने हमारी मित्रता पर शक क्यों किया? क्या तुमने कभी सोचा कि हमारे पास भी अपनी अपनी समस्याएं हो सकती हैं? मैंने तैरना नहीं सीखा तो क्या मैं मित्रता के लायक नहीं हूं? मैंने अपनी पूरी पूंजी तुम्हें दे दी। फिर भी तुम्हें मेरी नीयत पर शक हुआ। मैं घायल था और दूसरे गांव में था। फिर भी तुमने मेरे बारे में गलत सोचा। तुम कुछ सकारात्मक भी सोच सकते थे। तुमने मेरे ऊपर भी शक किया। कम से कम पूछ तो लेते कि क्या मैंने वो बात बताई है किसी को? अब हम तुमसे पूछते हैं मोहन, क्या तुम हमारे सच्चे मित्र हो? मोहन कुछ नहीं बोल पाया। उसकी आँखों में शर्मिंदगी और पछतावे के आँसू थे। देखो मोहन, ये सभी तुम्हारे सच्चे मित्र हैं। कोई भी इंसान उत्तम नहीं होता। तुम भी नहीं हो। इंसान के जीवन में मुश्किलें आती रहती हैं जिनकी वजह से वो हर समय, हर कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता। सच्ची मित्रता का मतलब सिर्फ कसौटियों पर खरा उतरना नहीं होता, बल्कि एक दूसरे को समझना और साथ देना होता है। आज यह सब अपनी परिस्थितियां तुम्हें समझाने आए हैं। यही निशानी है कि यह तुम्हारे सच्चे मित्र हैं और तुम्हारी शर्मिंदगी इस बात का सबूत है कि तुम इनके सच्चे मित्र हो। मोहन ने अपनी गलती का एहसास करते हुए अपने दोस्तों से माफी मांगी। मुझे माफ कर दो दोस्तों। मैंने तुम सब की सच्ची मित्रता पर शक किया और तुम्हें गलत समझा। मैं बहुत शर्मिंदा हूं यार। कोई बात नहीं मोहन, हम सब गलतियां करते हैं। सच्ची मित्रता में समझ और माफी दोनों होनी चाहिए। साधु महाराज की बात बिल्कुल सही है। कोई भी व्यक्ति उत्तम श्रेणी का नहीं होता। सब से कभी ना कभी गलती हो जाया करती है या फिर परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि इंसान साथ नहीं दे पाता। हमें एक दूसरे को माफ कर देना चाहिए। हम तुम्हें माफ करते हैं मोहन। और तुम हमें माफ कर दो। मित्रता का मतलब ही एक दूसरे पर विश्वास करना है। हमारी मित्रता पहले से भी मजबूत हो गई है। अब सब कुछ भूल जाओ। जो हो गया सो हो गया। मोहन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सच्ची मित्रता का मतलब समझा। सभी मित्र हँसते हुए एक दूसरे के साथ समय बिताने लगे। उनकी मित्रता अब पहले से भी ज्यादा मजबूत और गहरी हो गई थी।

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