
नन्हा वैभव अपनी माँ संगीता की गोद में चढ़ने की कोशिश करते हुए बोला मम्मा! मम्मा मेरी बात सुनो ना।संगीता ने उसे गोद में लेते हुए कहा। बस थोड़ी देर और रुक जाओ बेटा, मैं खिलौना डिजाइन कर लूं, फिर तुमसे ढेर सारी बातें करूंगी। संगीता एक जानी मानी खिलौना निर्माता कंपनी की हेड डिजाइनर थी। कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन के कारण आजकल वो घर से ही अपना काम कर रही थी। संगीता और वैभव के अलावा उनके घर में वैभव की छाया रहती थी लेकिन लॉकडाउन के कारण वो अपने गांव से वापस नहीं आ पाई थी। वैभव छह वर्ष का बहुत ही प्यारा और बातूनी सा बच्चा था। हर समय उसकी जुबान पर कोई ना कोई कहानी मौजूद रहती थी। पहले तो उसकी आया चाव से उसकी कहानियां सुनती थी लेकिन अभी वो भी छुट्टी पर थी। और संगीता अपने काम में ही व्यस्त रहती थी जिसके कारण वह उदास रहने लगा था। जैसे ही संगीता ने अपना कंप्यूटर बंद किया। मम्मा आप मेरे लिए एक बोलने वाली गुड़िया बना दो। फिर मैं आपको डिस्टर्ब नहीं करूंगा और उसी से अपनी सारी बातें किया करूंगा।वैभव की भोली सी बात सुन कर संगीता हंस पड़ी। कुछ सोच कर वो उठी और स्टोर रूम में चली गई। पिछले ही सप्ताह संगीता के डिजाइन किए हुए कुछ खिलौने फैक्ट्री से जांच के लिए उसके पास आए थे, जो अचानक कोरोना की वजह से दफ्तर बंद हो जाने के कारण उसके घर पर ही रह गए थे। संगीता ने उन खिलौनों में से एक गुड़िया निकाल कर वैभव को खेलने के लिए दे दी। वो गुड़िया वैसे तो दिखने में बहुत ही सुंदर थी लेकिन उसकी आंखें बहुत बड़ी थी। जो कभी कभी डरावना सा एहसास दे जाती थी। वैभव ने जैसे ही वो गुड़िया देखी वह खुशी से उछल पड़ा। अरे वाह मम्मा, आप कितनी अच्छी हैं। इतनी जल्दी आप मेरे लिए इतनी प्यारी गुड़िया ले आई। अब तो मैं इससे खूब सारी बातें करूंगा। वैभव गुड़िया को लेकर अपने कमरे में चला गया और संगीता खाना बनाने में जुट गई। कुछ देर के बाद जब संगीता और वैभव खाने के लिए बैठे तो संगीता ने देखा की वैभव ने ना सिर्फ अपना खाना बहुत जल्दी खा लिया बल्कि उसने संगीता की प्लेट से भी खाना लेकर खाना खाना शुरू कर दिया। संगीता थोड़ी हैरान हुई। फिर उसने सोचा की शायद देर तक खेलने के कारण वैभव को ज्यादा भूख लग गई होगी। खाना निपटा कर संगीता एक बार फिर अपने कंप्यूटर के आगे बैठ गई और वैभव अपनी नई गुड़िया से खेलने में मग्न हो गया। अभी कुछ ही मिनट बीते ही होंगे की वैभव के हंसने की आवाज से संगीता का ध्यान भंग हुआ। उसे आज वैभव की हंसी बदली हुई सी लगी। वह चौंक कर उसके पास पहुंची तो उसने देखा वह गुड़िया को लेकर अलमारी के ऊपर चढ़ कर बैठा हुआ था। उसे यूँ देख कर संगीता घबरा सी गई। तुम अलमारी पर कैसे चढ़े? अगर गिर जाते तो क्या होता? इस लॉकडाउन में मैं तुम्हें कैसे घर से बाहर हॉस्पिटल लेकर जाती और हॉस्पिटल में अगर तुम्हें मुझे इन्फेक्शन हो जाएगा तो क्या होगा? पता नहीं ये कौन सा नया खेल सूझा है तुम्हें। चलो जल्दी नीचे आओ। ओफ्फो मम्मा, कितना मजा तो आ रहा है। मेरी गुड़िया ने मुझसे कहा है कि हम यहाँ बैठकर खेलेंगे। इसीलिए मुझे उसकी बात माननी पड़ी और फिर उसका हाथ पकड़ कर मैं आसानी से यहाँ ऊपर आ गया। संगीता वैभव की कहानियाँ बनाने की आदत से वाकिफ थी इसलिए उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया और किसी तरह वैभव को अलमारी से नीचे उतारा। अब तुम्हें अकेले अपने कमरे में खेलने की जरूरत नहीं है तो मेरे सामने बैठ कर खेलो। वैभव को अपने सामने देख कर संगीता ने राहत की सांस ली और अपने काम में लग गई। अब कुछ ना कुछ अजीब घटनाएं रोज का क्रम बनती जा रही थी।
कभी वह जरूरत से ज्यादा खाता। तो कभी अजीब सी आवाज में हंसता। कभी वह पलक झपकते ही किसी ऊंची जगह पर बैठा हुआ नजर आता। तो कभी उसका चेहरा संगीता को डरावना सा अहसास देता। वैभव की हर बात में यह बात जुड़ी होती कि गुड़िया ने बोला, ऐसा करो, वैसा करो। लेकिन संगीता इसे वैभव का बचपना समझकर भुला देती थी। इन सब बातों के असर से संगीता को लगने लगा की वह शायद जरूरत से ज्यादा अपने काम में उलझ गई है और आराम के अभाव में उसे अजीब अजीब बातें दिखाई सुनाई पड़ने लगी है। इसलिए उसने तय किया की वह कल ही अपने बॉस से बात करके दो दिन की छुट्टी ले लेगी और अपने साथ साथ वैभव का भी पूरा ख्याल रखेगी। लेकिन अभी रात बाकी थी। संगीता ने रात के खाने के लिए जैसे ही वैभव को आवाज दी। नहीं मम्मा, मुझे नहीं खाना है। वैभव का जवाब सुनकर परेशान संगीता उसके कमरे में पहुंच कर बोली। क्यों नहीं खाओगे? चलो। जिद मत करो। गुड़िया ने मुझे खाने के लिए मना किया है। अगर मैं खाना नहीं खाऊंगा तो धीरे धीरे मर जाऊंगा और फिर उसकी तरह ही गुड़िया बन कर हमेशा के लिए उसकी दुनिया में उसके साथ रहूंगा। वैभव ने अजीब सी आवाज में कहा। वैभव के मुंह से मरने की बात सुनकर संगीता के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। उसने वैभव को थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया। लेकिन यह क्या? उसका हाथ बीच हवा में ही रुक गया। वह वैभव को छू ही नहीं पा रही थी। संगीता ने आश्चर्य से वैभव की तरफ देखा तो उसने पाया कि वैभव की आंखें लाल हो चुकी थी, मानो उसमें खून तैर रहा हो। उसके हाथ में मौजूद गुड़िया से भी हंसने की विचित्र आवाज आ रही थी, जो अब संगीता को बुरी तरह डराने लगी थी। गुड़िया और वैभव दोनों की आवाज एक साथ संगीता के कानों से टकराई। हमें थप्पड़ मारना तो बहुत दूर की बात है। तुम ना तो हमारे पास आ सकती हो और ना ही तुम हमें छू सकती हो। जाओ चली जाओ यहां से और हमें अकेला छोड़ दो।
संगीता के लिए वहां एक सेकंड भी खड़ा रहना मुश्किल हो गया था। पसीने से लथपथ, घबराई हुई सी वो तेजी से वहां से भाग कर अपने कमरे में आ गई। कुछ देर के बाद जब वो शांत हुई तब वो फिर धीरे से वैभव के कमरे में पहुंची। वहां पहुंचकर उसने देखा वैभव सो गया था लेकिन गुड़िया अभी भी उसके बिस्तर पर उसके पास ही थी। संगीता को अब उस गुड़िया से बहुत डर लग रहा था। फिर भी किसी तरह हिम्मत जुटा कर उसने गुड़िया को वैभव के पास से उठाया और उसे बाहर ले जाकर उसने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। फिर गुड़िया के इन टुकड़ों को उसने एक बॉक्स में पैक किया और उसे अन्य डैमेज खिलौनों के साथ रीकंस्ट्रक्शन के लिए स्टोर रूम में डाल दिया। चलो उस मनहूस गुड़िया से मुझे और मेरे बेटे को छुटकारा मिला। स्टोर रूम का दरवाजा बंद करते हुए संगीता स्वयं से बोली। अभी वो खुश होते हुए वैभव के कमरे में पहुंची ही थी की उसके मुंह से जोरों की चीख निकल गई। बिस्तर पर वैभव की जगह वही गुड़िया लेटी हुई थी और वैभव एक गुड्डे के रूप में उसके हाथ में था। तुम्हें क्या लगा? तुमने मुझे खत्म कर दिया। मुझे कोई खत्म नहीं कर सकता। मैं एक श्राप हूं। ऐसा श्राप जिसे कोई नहीं मिटा सकता। मुझे अपनी दुनिया में अपने जैसे कुछ साथी चाहिए थे। देखो, मैंने एक साथी ढूंढ लिया है। अब तुम्हारा वैभव भी गुड्डा बन चुका है। देखो। गुड़िया ने अपनी आंखों को नचाते हुए कहा। देखते ही देखते वह बेहोश होकर गिर पड़ी। बेहोशी में वो बस लगातार एक ही बात बड़बड़ा रही थी छोड़ दो। छोड़ दो, मेरे वैभव को छोड़ दो, छोड़ दो उसे गुड्डा मत बनाओ, मेरे वैभव को छोड़ दो। अचानक संगीता को महसूस हुआ कि कोई उसके चेहरे पर पानी डाल रहा है। उसने धीरे धीरे अपनी आंखे खोली तो उसके सामने पानी का जग लिए वैभव खड़ा था। वैभव पर नजर पड़ते ही संगीता झटके से उठ कर बैठ गई और उसने उसे खींच कर अपने गले से लगा लिया। संगीता की इस प्रतिक्रिया से वैभव ने घबरा कर उससे पूछा।
मम्मा आपको क्या हो गया था? पता है मैं कितना डर गया था। आप अपनी आंखें भी नहीं खोल रही थी और पता नहीं क्या क्या बोल रही थी। फिर मैंने आया आंटी को फोन करके उन्हें सारी बात बताई। तब उन्होंने मुझे आपके चेहरे पर पानी डालने के लिए कहा। यह सब सुनकर वैभव को स्वयं से अलग किए बिना संगीता बोली। मुझे कुछ नहीं हुआ है मेरे बच्चे। कुछ नहीं। और मैं कुछ होने भी नहीं दूंगी। भगवान का शुक्र है की वो सब एक डरावना सपना था। थोड़ी देर बाद जब संगीता कुछ संभली तब उसने वैभव से गुड़िया के विषय में पूछा। वैभव ने रुआंसी आवाज में कहा, पता नहीं मम्मा, मेरी गुड़िया कहां गई? मैं कब से उसे ही ढूंढ रहा हूं। यह सुनकर संगीता ने चुपचाप स्टोर रूम का रुख किया। वहां पैकेट में गुड़िया के टूटे हुए टुकड़ों को देखकर उसे तसल्ली हुई। संगीता ने तुरंत माचिस निकाली और गुड़िया के टुकड़ों में आग लगा दी। देखते ही देखते वो सारे टुकड़े जलने लगे। आग के बुझने के बाद जब संगीता वैभव के कमरे में पहुंची तो वहां वैभव की जगह पर वही गुड़िया बैठी थी और संगीता को देख कर मुस्कुरा रही थी। संगीता उसे बिस्तर पर देख कर हैरान हो गई। तभी गुड़िया के अंदर से आवाज आई। मैंने कहा था ना मैं एक श्राप हूं श्राप जिसे कोई नहीं मिटा सकता है यह सुनते ही संगीता के रोंगटे खड़े हो गए संगीता भागते हुए जैसे ही स्टोर रूम में पहुंची उसकी चीख निकल गई उसने गुड़िया समझकर वैभव के टुकड़े करके उसे आग लगा दी थी। अक्सर पागल खाने में रोते हुए संगीता की आवाज सुनाई देती थी। मैंने वैभव को नहीं मारा है मैने तो श्रापित गुड़िया को मारा था।